श्री गणेशाय नम:
॥ ॐ श्री गणेशाय नम: ॥
सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मम्।उदण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्डम्
आखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम्।
भावार्थ: अनाथों के बंधु, सिंदूर से शोभायमान दोनों गण्डस्थलवाले, प्रबल विघ्न का नाश करने में समर्थ एवं इन्द्रादि देवों से नमस्कृत श्री गणेश का मैं प्रातः काल स्मरण करता हूँ|
२.
तीर्थानां च परं तीर्थं कृष्णनाम महर्षयः।
तीर्थीं कुर्वन्ति जगतीं गृहीतं कृष्णनाम यैः।।
हे ऋषियो ! समस्त तीर्थों में सर्वोपरि तीर्थ 'कृष्ण' नाम है। जो लोग श्रीकृष्णनाम का उच्चारण करते हैं, वे संपूर्ण जगत को तीर्थ बना देते हैं।
सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मम्।उदण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्डम्
आखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम्।
भावार्थ: अनाथों के बंधु, सिंदूर से शोभायमान दोनों गण्डस्थलवाले, प्रबल विघ्न का नाश करने में समर्थ एवं इन्द्रादि देवों से नमस्कृत श्री गणेश का मैं प्रातः काल स्मरण करता हूँ|
२.
तीर्थानां च परं तीर्थं कृष्णनाम महर्षयः।
तीर्थीं कुर्वन्ति जगतीं गृहीतं कृष्णनाम यैः।।
हे ऋषियो ! समस्त तीर्थों में सर्वोपरि तीर्थ 'कृष्ण' नाम है। जो लोग श्रीकृष्णनाम का उच्चारण करते हैं, वे संपूर्ण जगत को तीर्थ बना देते हैं।
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